क्या बिहार राज्य के औरंंगाबाद जिले में कुटूम्बा प्रखंड़ के रक्तरंजित धरती पर खूनी संघर्ष के जारी खेल का पटाक्षेप होंंगा?
क्या पुलिस एवं प्रशासानिक पदाधिकारियों द्वारा अपराधकर्मियों | रोपियों "को संरक्षण देने की खेल बंद होगें?
अनिल कुमार मिश्र संवाददात्ता, औरंगाबाद (बिहार) :
औरंंगाबाद (बिहार) 15 अगस्त 2022 :- पुलिस संरक्षण में बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में कुटूम्बा प्रखंड़ की धरती पर जारी खूनी संघर्ष की खेल तथा पुलिस द्वारा अपराधकर्मियों "आरोपियों " का जारी संरक्षण का सराशं को आपके बीच "स्वतंत्रता दिवस के 76वें वर्षगांठ तथा आजादी के 75वें अमृत महोत्सव के अवसर पर "राष्ट्रीय ध्वज का झंडोत्तोलन के पश्चात " रखना चाहते हैं ,जिसको सुनकर आप केवल हैरान व परेशान ही नहीं होगें ,बल्कि आजाद भारत का अस्तित्व पर सवाल उठाने के लिए विवश व बाध्य होगें।
क्या पुलिस संरक्षण में जारी खूनी संघर्ष की खेल जायज है, अगर नहीं तो भारतीय कानून के विधिसम्मत धराओं के तहत ऐसे पदभ्रष्ट पुलिस पदाधिकारियों को समुचित सजा दिलाने की कार्रवाई क्यों नहीं होता है, क्या आजाद भारत का अस्तित्व और पहचान यही है या आज के परिवेश में आजाद भारत का अस्तित्व और पहचान यहीं हैं।
आजादी की आड़ चंदलोगो के आतंक जिसकदर आजाद भारत के बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले का कुटूम्बा प्रखंड़ में जारी है, वह वास्तविक में देश की आजादी एवं आजाद भारत के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करता
क्या बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले का कुटूम्बा विधानसभा क्षेत्र सह कुटूम्बा प्रखंड़ के अम्बा की धरती पर पुलिस संरक्षण एवं इनके उकसावे व बहकावे में खुनी संघर्ष की जारी खेल जायज है, अगर नहीं तो कुटूम्बा प्रखंड़ में खुनी संघर्ष का जारी खेल तथा अपराध व भ्रष्टाचार के बढ़ते ग्राफ का जनक "अम्बा थाना के पदेन थानाध्यक्ष एवं इनके अनैतिक कार्यों के संरक्षक पुलिस पदाधिकारियों " पर विधिसम्मत कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं किया जा रहा है और वरीय पुलिस व प्रशासानिक पदाधिकारी आज भी इन हलातों में मूकदर्शक क्यों हैं।
कुटूम्बा प्रखंड़ के धरती पर जारी खूनी संघर्ष का देन अगर उद्देश्यों से भटक चुके पुलिस एवं प्रशासानिक पदाधिकारी हैं। तो ऐसे पुलिस पदाधिकारियों को सजा दिलाने में बिहार - सरकार, सरकार में बैठे नेता, विपक्ष एवं जिलें के पुलिस एवं प्रशासनिक पदाधिकारी हिचक क्यों रहे हैं तथा घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने एवं अपराधकर्मियों को समुचित सजा दिलाने की जगह आज भी मुकदर्शक क्यों हैं? क्या कुटूम्बा प्रखंड़ की धरती पर इसी तरह खुनी संघर्ष का दौर जारी रहेगा और यह धरती रक्तरंजित होतें रहेंगे,उक्त.बातें सोशल एक्टिविस्ट , बुद्धजीवियों, पत्रकारों तथा जनमानस की बीच कौतूहल का विषय बन चुका है और सभी लोग पुलिस संरक्षण में कुटुंबा प्रखंड के धरती पर जारी खूनी संघर्ष, हत्या, अपराध एवं भ्रष्टाचार के बढ़ते ग्राफ की जांच उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से कराने की मांग कर रहें है ताकि पुलिस संरक्षण में विगत 22 वर्षो से कुटूम्बा प्रखंड़ के धरती पर जारी खूनी संघर्ष , हत्या, अपराध एवं भ्रष्टाचार के बढ़ते ग्राफ की घटनाओं का पटाक्षेप हो सके।
सर्वेक्षण बतातें है कि विगत 22 वर्षों से अम्बा थाना के पदेन थानाध्यक्ष एवं इनके अनैतिक कार्यो के संरक्षक पुलिस व प्रशासानिक अधिकारियों के संरक्षण में अपराध व भ्रष्टाचार का ग्राफ निरंतर बढ़ा है और हम वर्चस्व की लड़ाई में खूनी संघर्ष का दौर प्रारंभ हुआ हैं, जिसमें अम्बा थाना के पदेन थानाध्यक्ष का अहम भूमिका "कुटूम्बा प्रखंड़ की धरती को दिन प्रतिदिन रक्तरंजित करते जा रहा " है। ऐसे भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध जिले के पदेन पुलिस कप्तान एवं जिला पदाधिकारी न जानें क्यों मूकदर्शक है और जनता के शोषक वर्ग व लूटेरे वर्ग के विरुद्ध आरोपों की निष्पक्ष जाँच कर ( हत्या की दौर जैसे जघन्य अपराधिक घटनाओं एवं पुलिस द्वारा अपराधकर्मियों के संरक्षण का जारी खेल ) मामले की पटाक्षेप क्यों नहीं कराना चाहते है और इसके पीछे किसका हाथ है तथा यहां के नेता एवं प्रशासनिक अधिकारी चाहते क्या है ? यह सोशल एक्टिविस्ट , पत्रकारों तथा पीड़ित एवं प्रभावित जनता की समझ से भी परे हो चुका है और पुलिस से न्याय का विश्वास भी जनमानस खो चूके है, जिसका मूल्य वजह विगत 22 वर्षो से पुलिस पदाधिकारियों द्वारा राजनीतिक संरक्षण प्राप्त दवंग ब्यक्ति को क्लीन चिट देना हैं और निर्दोष समाजसेवियों , पत्रकारों एवं पीड़ित व प्रभावित जनता तथा इनके पुरे परिवार को गलत व झूठे मुकदमों में फसाकर तंगो- तबाह करना है।
वर्तमान हालात व उत्पन्न परिस्थितियों का समाधान जनमानस के बीच अब महज उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों की टीम बनाकर मामले की जाँच कराना तथा जाँचोपरान्त (घटनाओं की पुनरावृत्ति पर रोग लगाने हेतू ) अपराध कर्मियो के संरक्षक पुलिस व प्रशासानिक पदाधिकारियों पर कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाई करना ही दिखाई देते हैं।
सर्वेक्षण एवं हालात बताते हैं कि बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में कुटूम्बा प्रखंड़ की धरती पर जब शोशल एक्टिविस्ट एवं पत्रकार ही सुरक्षित नहीं हैं और पुलिस संरक्षण में जनता के शोषक वर्ग एवं अपराध कर्मियों द्वारा हमेंशा पत्रकारों एवं सोशल एक्टिविस्ट पर हमला / जानलेवा हमले होता है और मनगढंत , झुठे व फर्जी मुकदमे में फंसा दिये जाते हैं तथा सूचक द्वारा मुकदमे को झूठे करार देने के पश्चात भी झूठे मुकदमे को वरीय पुलिस पदाधिकारी द्वारा सत्य करार दे दिया जाता है तो आम - आवाम, दबे- कुचले तथा पीड़ित व प्रभावित जनता के साथ हालात क्या होंगे, यह तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।