हजरत शाह जहांगीर (I) मौलाना मुख़लिसुर रहमान QSA का उर्स मुबारक ।
हजरत शाह जहांगीर (I) मौलाना मुख़लिसुर रहमान QSA का उर्स मुबारक ।
हम सभी को अज़ीम सूफी वली अल्लाह, हज़रत शाह जहाँगीर (I) शेख़ उल आरेफीन मौलाना मुख़लिसुर रहमान (QSA) के उर्स (गुजरने का वार्षिक स्मरणोत्सव) की शुभकामनाएं दे रहे हैं।
उनका जन्म 15 धुल हिज्जा, 1229 A.H ( November 28, 1814 ) को हुआ था। जब वह केवल ढाई वर्ष के थे, तब उनके वालिद का विसाल हो गया, इसलिए उनकी वालदा ने उनके प्रारंभिक वर्षों में उनकी देखभाल की।
अपनी किशोर उम्र में वे घर से दूर आलिया मदरसा में उच्च इस्लामी अध्ययन के लिए भारत के कलकत्ता शहर चले गए। उनकी याददाश्त इतनी तेज थी कि उन्होंने एक बार कहा था कि किसी विषय को पढ़ने के बाद वह उन्हें 14 साल तक याद रहा।
बाद में उन्होंने 1259 ए.एच. (1843) में सर्वोच्च औपचारिक डिग्री, "ममताज़ुल मुहद्दिथिन" अर्जित की। उन्हें मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों द्वारा "बड़े मौलाना" (बड़े विद्वान) के रूप में अत्यधिक सम्मान दिया जाता था।
बाद में अपने जीवन में, वह एक शेख़ (आध्यात्मिक मार्गदर्शक) की तलाश में थे। उन्हें बताया गया कि यह प्रबुद्ध आत्मा भारत के भागलपुर शहर में है। वह तुरंत गए और हज़रत शाह सैयद इमदाद अली (क्यूएसए) की ख़िदमत में पेश हो गए जो उस समय मुख्य न्यायाधीश थे। हज़रत सैयद शाह इमदाद अली (क्यूएसए) ने हज़रत मौलाना मुख़लिसुर रहमान जहांगीरी (क्यूएसए) को बहुत प्यार और स्नेह दिखाया और उन्हें 1266 एएच (26 नवंबर, 1849) में केवल छह महीने के बाद ख़िलाफत और इजाज़त से नवाज़ा । हज़रत सैयद शाह इमदाद अली (क्यूएसए) ने बाद में उन्हें "शाह जहाँगीर" के लक़ब से भी नवाज़ा ।
हज़रत मौलाना मुख़लीसुर रहमान जहाँगीरी (क्यूएसए) ने फिर भारत के छपरा में अपने दादा मुर्शिद, हज़रत शाह मोहम्मद महदी फ़ारूक़ी से मुलाकात की जिन्होंने बहुत प्यार और मोहब्बत से उनका स्वागत किया।
हज़रत मौलाना मुख़लिसुर रहमान जहाँगीरी (क्यूएसए) ने लोगों से दूरी बनाए रखते हुए 30 साल कठिन और अथक आध्यात्मिक अभ्यास में बिताए। वह ज्यादा नहीं सोते थे और जब वह सोते तो किसी के बुलाने पर तुरंत जवाब दिया करते। उन्होंने चिट्टगोंग बंगलादेश से अजमेर शरीफ, भारत की अपनी प्रसिद्ध दौरा किया, जो 6 महीने का सफर था।
वह शरीयत (इस्लामी का़नून) और तरिका़ह (आध्यात्मिक पथ) दोनों में महारत हासिल करने के कारण अपनी उम्र के सबसे महान विद्वान के रूप में जाने जाते थे। उनके पास इतना ऊंचा आध्यात्मिक मक़ाम था कि उन्हें उनके विसाल का पैग़ाम तीन बार मिला, जो केवल खास ओ खास (विशेष के विशेष) औलिया (संतों) के लिए आरक्षित है।
आपका विसाल 73 वर्ष की आयु में 12 धुल कायदा, 1302 A.H (24 अगस्त, 1885) को हुआ । आपकी विश्राम स्थल बंग्लादेश के चिट्टगोंग में दरबार मिरज़ाख़िल शरीफ में है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बंगलादेश में दरबार मिरज़ाख़िल शरीफ हमारे आध्यात्मिक वंश के लिए अत्यधिक महत्व रखता है क्योंकि इसमें महान औलिया अल्लाह हज़रत शाह जहांगीर (I) मौलाना मुख़लिसुर रहमान (क्यूएसए), हज़रत शाह जहांगीर (II) फख़रुल आरेफिन अब्दुल हई (क्यूएसए) और हज़रत शाह जहांगीर (III) शमसुल आरेफिन मौलाना मोहम्मद मकसुसुर रहमान (क्यूएसए) की बारगाहे हैं ।
हमारे शेख़ हज़रत ख़्वाजा मौलाना मोहम्मद ख़ुशहाल शाह (क्यूएसए) बंगलादेश में हमारे शुयुख़ के जीवन को सीरत-ए फख़रुल आरेफीन की किताब से बताया करते और हज़रत शाह जहांगीर (द्वितीय) मौलाना अब्दुल हई (क्यूएसए) से सीधे हवाला करते हुए बयान फरमाते । उन्होंने दरबार मिरज़ाख़िल का भी दौरा किया और हज़रत शाह जहाँगीर (IV) ताजुल आरेफीन मौलाना आरफुल को खूबसूरत मालाएँ पेश कीं जिन्हें आज भी याद किया जाता है।
हज़रत ख़्वाजा मौलाना मोहम्मद ख़ुशहाल शाह (क्यूएसए) दरबार के प्यार, शिष्टाचार, सम्मान और आभा से चकित थे। दरबार मिरज़ाख़िल में किस तरीक़े से ख़ामोशी काँ ख़याल रखा जाता वे इस बारे में अपने मुरीदों को बताया करते थे। उन्होंने बताया कि कैसे वह हिंदुस्तानी झोपड़ी में रहे और वहाँ ख़ानकाह में आने जाने वाले लोगों को किस क़दर मोहब्बत से इस्तक़बाल किया जाता है। वह अक्सर इस बारे में बात करते थे कि कैसे हज़रत शाह जहाँगीर (IV) मौलाना आरफुल हई (QSA) अपनी अत्यधिक विनम्रता और आतिथ्य के साथ अपने पूर्वजों से मिलते जुलते हैं।
हज़रत सूफी जव्वाद अहमद ख़ुशहाली (एकमात्र संरक्षक, प्रथम उत्तराधिकारी और दरबार ए ख़ुशहालिया के वर्तमान सज्जादा नशीन) ने हज़रत शाह जहांगीर (IV) मौलाना आरेफुल हई और हज़रत शाह जहाँगीर (V) डॉ. मक़सूदुर रहमान जो सिलसिला-ए-आलिया, जहाँगीरिया के नायब-ए-सज्जादा नशीन (उत्तराधिकारी) हैं से मिलने और उच्च सम्मान देने के लिए नई दिल्ली, भारत में जश्न-ए-जहांगीरी में शामिल होने का हमेशा ख़ास ख़याल रखा है। हज़रत शाह जहाँगीर (V) डॉ. मौलाना मक़सूदुर रहमान ने इस्लाम की शिक्षाओं को फैलाने और मानवीय कार्यों को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ट कार्य किए हैं।
वही मोहब्बत हज़रत सूफी जव्वाद अहमद ख़ुशहाली और मोहम्मद मसूदुर रहमान (सरफराज़ मिया) के बीच भी देखी जाती है जो सभी जहांगीरी शाखाओं के साथ सबको जोड़े हुए हैं और महान दान कार्य में लगे हुए है।
या अल्लाह, हम सब को अपनी बरगाह-ए- एहदियत में कर क़बूल,हज़रत मुख़लिसुर रहमान जहाँगीरी ए हुदा के वास्ते ।
सिलसिला-ए-आलिया ख़ुशहालिया !!
(संदर्भ: हज़रत अशरफ जहांगीर सिमनानी (आरए) और उनके आड एनकाउंटेर्स सल्तनत-ए-बंगला में : मिरज़ाख़िल दरबार शरीफ - एक केस स्टडी, पृष्ठ 18 से 28)
Editor cum Bureau chief.
Lucknow