हिन्दू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अंगीकार कर मैं बहुत प्रसन्न हूं : डॉ अम्बेडकर
- एल. एस. हरदेनिया
‘‘मैं आज बहुत ही प्रफुल्लित हूं. मैं जरूरत से ज्यादा प्रसन्न हूं. मैंने जिस क्षण हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया है मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैंने नर्क से मुक्ति पा ली है." ये शब्द डॉ. अम्बेडकर के उस भाषण के हैं जो उन्होंने हिन्दू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म को स्वीकार करते हुए दिया था.
उन्होंने अपने भाषण में याद दिलाया कि सन् 1935 में हमने हिन्दू धर्म त्यागने का आंदोलन प्रारंभ किया था. उसी दरम्यान मैंने यह फैसला किया था कि मैं हिन्दू पैदा हुआ था परंतु मैं हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं. मैंने कल यह सही साबित कर दिया. आज में अत्यंत प्रसन्न हूं. मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैंने हिन्दू रूपी नर्क से मुक्ति पा ली है.
नागपुर में सन् 1956 के 15 अक्टूबर को अपार जनसमूह को संबोधित करते हुए डॉ अम्बेडकर ने कहा ‘‘मुझे यह जानकर आष्चर्य है कि हर जगह यह बातचीत चल रही है कि मैं धर्म परिवर्तन कर रहा हूं. पर कोई यह नहीं पूछ रहा कि मैं हिन्दू धर्म छोड़कर कौनसा धर्म स्वीकार कर रहा हूं. मेरा उत्तर है कि मैं बौद्ध धर्म अंगीकार कर रहा हूं. मैं क्यों बौद्ध धर्म को स्वीकार कर रहा हूं? मैंने बहुत पहले हिन्दू धर्म त्यागने का निर्णय ले लिया था क्योंकि मैंने हिन्दू समाज में अत्यधिक अपमान का जीवन जिया था. मेरे पिता बहुत गरीब थे. शायद किसी और व्यक्ति ने इतना कठिन जीवन जिया हो जितना मैंने जिया.
‘‘मैने यह महसूस किया कि भैंस, बैल और इंसान में अंतर है. भैंस और बैल को प्रतिदिन भुसा चाहिए. खाना तो इंसान को भी चाहिए. परंतु एक अंतर है. वह यह कि इंसान के पास मस्तिष्क है. मस्तिष्क के विकास के लिए सांस्कृतिक वातावरण चाहिए. समाज में पूछा जाता है अरे यह महार है. यह नीच महार प्रथम दर्जा चाहता है. इसे तीसरे दर्जे में रहना चाहिए. प्रथम दर्जे में रहने का अधिकार तो ब्राम्हण को है. ऐसी स्थिति में महार का विकास कैसे हो सकता है. ऐसा वातावरण बना दिया गया जिसमें महार के दिमाग का विकास संभव नहीं. मेरा ही उदाहरण लें. मुझे स्कूल में बिना पानी के रहना पड़ता था. मैं एक ही कपड़े में स्कूल जाता था.
‘‘हिन्दू समाज को चार वर्णों में बांटा गया था. मनुस्मृति में ऐसा विभाजन किया गया है. हिन्दू समाज में जो हमें नीचे दर्जे में रखते हैं वे स्वयं भी एक दिन नष्ट हो जाते हैं. हिन्दू धर्म में रहकर कोई भी विकास नहीं कर सकता. वह धर्म ही ऐसा है जिसमें सभी के लिए विकास के दरवाजे बंद रहते हैं. हिन्दू धर्म विध्वंस का धर्म है. जब ब्राम्हण मां बच्चे को जन्म देती है तो सोचती है उसका बेटा जज बनेगा. परंतु जब महार मां बच्चे को जन्म देती है तो वह सोचती है कि उसका बच्चा सड़क झाड़ने वाला मेहतर बनेगा. वह सोच ही नहीं सकती कि उसका बच्च जज बनेगा.
‘‘ईसाई धर्म बुनियादी रूप से गरीबों का धर्म है. इसी तरह बौद्ध धर्म महारों का धर्म है. ब्राम्हण लोग गौतम बुद्ध को ‘वो गौतम' कहकर पुकारते थे. हमने बौद्ध धर्म अंगीकार करके एक नया रास्ता, एक नई मंजिल पाई है. यह उच्चता प्राप्त करने और प्रगति का धर्म है. यह रास्ता बाहर से नहीं आया है. यह हमारे देश का है. यह पूर्ण रूप से भारतीय है. मैं कभी-कभी सोचता हूं कि हम बौद्ध क्यों नहीं. क्या कारण था कि बौद्ध धर्म के अनुयायी भारत से आगे चले गए. कुछ तिब्बत चले गए, कुछ चीन चले गए. बौद्ध धर्म अंगीकार करते हुए हमें याद रखना चाहिए कि सारी दुनिया बौद्ध धर्म का सम्मान करती है. अमरीका में बौद्ध धर्म की 2000 संस्थाएं हैं. इसी तरह इंग्लैंड और जर्मनी में भी बौद्ध धर्म की हजारों संस्थाएं हैं.
बौद्ध धर्म की मौलिक नींव क्या है. बौद्ध धर्म और अन्य धर्मों में क्या अंतर है? अन्य धर्मों के अनुसार सब कुछ ईश्वर ने बनाया है, आकाश, चन्द्रमा, सूर्य सब कुछ ईश्वर ने बनाया है. हमने इंसान के लिए कुछ नहीं छोड़ा है. बौद्ध धर्म में ईश्वर और आत्मा का कोई स्थान नहीं है. बुद्ध के अनुसार सारी दुनिया में दुःख है. बौद्ध धर्म का काम सारी मानवता को दुःख से उबारना है. कार्ल मार्क्स भी यही कहते हैं. उन्होंने जो कहा वह बुद्ध ने जो कहा उससे भिन्न नहीं है.
हिन्दू धर्म की रचना ऐसी है जिसके चलते पिछले हजार वर्षों में हमारी जाति में एक भी ग्रेजुएट पैदा नहीं हुआ. यहां तक कि मेरी जाति के लोगों को पानी पीने को भी नहीं मिलता था. पानी पीने के लिए हमें स्कूल के चपरासी का सहारा लेना पड़ता था. अब आपकी जिम्मेदारी है कि आप बौद्ध धर्म का पालन ऐसे करें जिससे सब आपका सम्मान करें. आप लोग ऐसा कुछ न करें जिससे बौद्ध धर्म पर कोई आंच आए.
उच्च जाति के लोग कहते हैं कि हम यदि एक भैंस की लाष को ठिकाने लगाते हैं तो हमें 500 रू. मिलते हैं. मेरा आपसे कहना है कि आप ही भैंस और गायों की लाशों को ठिकाने लगाएं और 500 रू. कमाएं. एक ब्राहम्ण युवक मेरे पास आया और कहने लगा कि आपको अब क्या करना चाहिए. आपके लिए संसद में सीटें आरक्षित हो गईं हैं. मैंने उससे कहा कि तुम मेहतर बन जाओ और इन सीटों को भर लो. आरक्षण अकेले से काम नहीं चलता है. बात सम्मान की भी है. पैसा तो वेश्या भी कमाती है. सुबह उठते हुई वह नाष्ते में खीमा और डबल रोटी खाती है. परंतु मेरे समाज के लोगों को चने फुटाने भी नाष्ते में नहीं मिलते हैं. पर वे इज्जत से रहते हैं.
ये अखबार वाले मुझसे पूछते हैं कि क्या बौद्ध धर्म स्वीकार करने से हमारे समाज के लोगों को सम्मान मिलेगा. मैं किसी को बौद्ध धर्म स्वीकार करने को मजबूर नहीं करूंगा. जो बौद्ध बनना चाहते हैं वे मन से बनें. मेरी मान्यता है कि मनुष्य के विकास के लिए धर्म आवश्यक है. परंतु वह धर्म हिन्दू नहीं हो सकता. हिन्दू समाज में पैदा होकर मैंने बहुत ही अपमान की जिंदगी बिताई. इसलिए वर्षों पहले मैंने फैसला कर लिया था कि भले ही मैंने जन्म हिन्दू समाज में लिया हो मैं हिन्दू के रूप में कदापि नहीं मरूंगा. आज मेरा यह सपना पूरा हो रहा है. इसलिए मैं बहुत प्रसन्न हूं.
आखिर हिन्दू समाज मनुस्मृति से संचालित होता है. मनुस्मृति में चतुवर्ण की व्यवस्था है. मनुस्मृति में यह व्यवस्था है कि शूद्र सिर्फ काम करेगा. चतुवर्ण व्यवस्था मानवता के विकास के लिए खतरनाक है. मनुस्मृति के अनुसार शूद्रों को शिक्षा कतई जरूरी नहीं है. शिक्षा का अधिकार सिर्फ ब्राम्हणों को है. क्षत्रियों का काम हथियारों से लैस रहना है और वेश्यों को व्यापार करने का अधिकार है. चतुवर्ण सिर्फ सामाजिक व्यवस्था नहीं है. वह धर्म है. ऐसे धर्म में हम क्यों रहें? इसलिए बहुत सोच समझकर मैं आप लोगों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर रहा हूं.
कई लोगों ने यह सवाल पूछा कि धर्म परिवर्तन का कार्यक्रम नागपुर में क्यों संपन्न हो रहा है. कुछ लोगों ने यह शंका प्रकट की कि चूंकि नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है इसलिए उन्हें बदनाम करने के लिए नागपुर को चुना गया. ऐसी कोई बात नहीं है. एक समय था जब नागपुर नागाओं का कार्यस्थल था. आर्यों और अनार्यों के बीच अनेक युद्ध हुए. पुराणों में इस तरह के अनेक उदाहरण हैं जिनमें यह बताया गया है कि कैसे आर्यों ने नागाओें को जला दिया. प्रसिद्ध ऋषि अगस्ती एक नागा को बचाने में सफल हुए. हम उन्हीं नागाओं की संताने हैं. नागा, जिन्होंने भयंकर शोषण का सामना किया उन्हें किसी महापुरूष की आवश्यकता थी जो उनका उद्धार कर सके. गौतम बुद्ध के रूप में उन्हें वह महान व्यक्ति मिला. उसके बाद इन नागाओं ने बुद्ध की शिक्षा को सारे देश में फैलाया. इन नागाओं का कार्यस्थल नागपुर और उसके आसपास था. इसलिए नागपुर को चुना गया ना कि आरएसएस को शर्मिंदा करने के लिए.