कट्टरता विनाश लाती है | bigotry brings destruction

hindu and hindu rastra ki baat kya kattarwad nahi hai? Kya yah aag me ghee dalne wala kaam nahi hai? kya is tarah ki baat karna deshdroh aur aantakwad nahi hai?

कट्टरता विनाश लाती है | bigotry brings destruction
bigotry brings destruction

कट्टरता विनाश लाती है. कहने का क्या मतलब?

पाकिस्तान में एक ऐसी ट्रेन चलती है जिससे वहां के संपन्न लोग ही यात्रा करते हैं। पाकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान मैंने भी इस ट्रेन से यात्रा की है। यात्रा के दौरान मेरे कंपार्टमेंट में कुछ युवा उद्योगपति भी यात्रा कर रहे थे। मैंने उनसे पाकिस्तान की स्थिति के बारे में बातचीत की। उनकी बातों का लब्बो लबाब यह था कि काश हमारे यहां  भी बिड़ला, टाटा अंबानी, गोदरेज, बजाज आदि होते तो पाकिस्तान की हालत ऐसी नहीं होती जैसी है। उनके कहने का आशय यह था कि यदि पाकिस्तान में  मिली-जुली आबादी होती, मुसलमानों के साथ हिन्दुओं को रहने दिया जाता तो उनकी प्रतिभा का लाभ पूरे देश को मिलता। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनने के बाद अपने पहले भाषण में यह स्पष्ट कहा था कि पाकिस्तान एक सेक्युलर राष्ट्र रहेगा। उन्होंने पाकिस्तान में सभी धर्मों के लोगों को पूरी सुरक्षा की गारंटी ठीक उसी प्रकार दी थी जैसे गांधी, नेहरू आदि ने भारत में सभी धर्मों के अनुयायियों को दी थी।

इन नवयुवकों की राय थी कि यदि पाकिस्तान एक सेक्युलर राष्ट्र बना रहता तो वह उतना ही मजबूत होता जितना भारत है। परंतु हमने तो हिन्दुओं को खदेड़ा, हमने उर्दू को लादने की जिद की जिसके नतीजे में हमारा देश विभाजित हो गया। हमने न तो प्रजातंत्र की जड़ें मजबूत कीं और ना ही हमने आर्थिक व औद्योगिक अधोसंरचना बनाने की कोशिश की। हमने भारत के समान स्वतंत्र विदेश नीति नहीं अपनाई। हम अमेरिका के पिछलग्गू हो गए। इसके विपरीत भारत ने जहां से भी संभव हुआ बिना शर्त के सहायता स्वीकार की। भारत ने मुख्यतः सोवियत संघ समेत समाजवादी देशों से सहायता ली। भारत ने सार्वजनिक क्षेत्र में पहला स्टील प्लांट भिलाई में सोवियत संघ की सहायता से स्थापित किया, हमने हेवी इलेक्ट्रिकल्स कारखाना भोपाल में खोला। हमने अधोसंरचना स्थापित मजबूत करने के हर संभव कदम उठाए। भुखमरी का सामना करने वाले देश के स्थान पर हम अनाज के निर्यातक बन गए। पेट्रोलियम के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के भी हमने अनेक प्रयास किए। तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री के. डी. मालवीय ने दावा किया था कि पाकिस्तान से युद्ध के समय हमने तेल के मामले में 40 प्रतिशत से ज्यादा आत्मनिर्भरता हासिल कर ली थी। इस आत्मनिर्भरता के कारण ही हम पाकिस्तान से युद्ध जीत सके।

इसके अतिरिक्त हमने प्रजातंत्र को मजबूत करने के हर संभव उपाय किए। चुनाव समय पर हुए। संसद और विधानसभाएं पूरी जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य निभाते रहे। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संसद समेत तमाम संवैधानिक संस्थाओं को पूरा सम्मान देते थे। स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र प्रेस के मामले में उन्होंने कभी कोई बाधा नहीं डाली। इस कारण भारत एक मजबूत प्रजातंत्र बना रहा। इसके साथ ही पूरी मुस्तैदी से भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश बना रहा। यद्यपि बीच-बीच में साम्प्रदायिक संगठनों ने देष की फिजा बिगाड़ने का प्रयास किया किंतु इन संस्थाओं को देश पर हावी नहीं होने दिया गया।

हिन्दू राष्ट्र और हिन्दुत्व की बात हिंदुस्तान में कितना उचित?

वर्तमान में जो पार्टी केन्द्र में सत्ता पर है वह देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का नारा देती है। हिन्दुत्व की बात करती है। बीच-बीच में ऐसे कदम उठाए जाते हैं जिनसे अल्पसंख्यकों के मन में भय की भावना उत्पन्न होती हैै। यहां इस सच्चाई को ध्यान दिलाना प्रासंगिक होगा कि जिन भी देशों में धर्म आधारित सत्ता है वहां न तो प्रजातंत्र है, ना ही महिलाओें के अधिकार (यहां तक कि उन्हें शिक्षा तक से वंचित कर दिया जाता है), न स्वतंत्र न्यायपालिका ना ही स्वतंत्र प्रेस। यदि चुनाव होते भी हैं तो महज दिखावे के लिए। हम देख रहे हैं कि ईरान में इस्लामिक मान्यताओं व हिजाब आदि का विरोध करने वालों को उसी दिन, मात्र एक दिन की न्यायिक कार्यवाही का दिखावा कर, फांसी दी जा रही है। ऐसे लोगों में बहुसंख्यक महिलाएं हैं। इन्हें कानूनी सहायता तक उपलब्ध नहीं कराई जाती है।

इस समय अफगानिस्तान में लगभग जंगल राज है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इन देशों में सत्ता का संचालन धर्म (इस्लाम) के नाम पर हो रहा है। भारत के अनेक पड़ोसी देशों में प्रजातंत्र समाप्त हो गया है क्योंकि वहां अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव का बर्ताव किया जाता है। श्रीलंका में गैर-सिंघली और बर्मा में गैर-बौद्ध सुरक्षित नहीं हैं। वहां वर्षों से सैनिक शासन है। नेपाल में बड़ी मुश्किल से प्रजातंत्र की जड़ें मजबूत हो रही हैं। नेपाल में पहले हिंदू राजा का शासन था। बांग्लादेष में धर्मनिरपेक्ष शासन है किंतु वहां भी बीच-बीच में धर्मनिरपेक्ष राज को कमजोर करने के प्रयास होते रहते हैं।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रजातंत्र उन्हीं देशों में मजबूत रहता है जिनमें सभी धर्मों के अनुयायियों को बराबरी के अधिकार प्राप्त रहते हैं। हमारे देश के शासकों को सबक लेना चाहिए और ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे धर्मनिरपेक्षता की जड़ें कमजोर हों और पाकिस्तान की एक शायरा (फहमीदा रियाज) का भारत के बारे में लिखी गई कविता गलत साबित हो कि ‘तुम बिलकुल हम जैसे निकले’।

- एल एस हरदेनिया