संविधान की उद्देशियका और कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान

न्यायमूर्ति मिश्रा बेनेट विश्वविद्यालय के सात दिवसीय संविधान महोत्सव के अंतिम दिन के कार्यक्रम में बोल रहे थे। अपने भाषण के प्रारंभ में उन्होंने संविधान की उद्देशियका का महत्व समझाया।

संविधान की उद्देशियका और कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान
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हमारे संविधान की उद्देशियका उसकी स्पंदन या धड़कन है। वह संविधान में निहित विचार व दर्शन को उद्घाटित करती है। यह विचार है सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा का। उन्होंने उद्देशियका में निहित सार्वभौमिकता, समाजवाद, धर्म निरपेक्षता, स्वतंत्रता और न्याय शब्दों की व्याख्या करते हुए कहा कि इन सब में संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र संविधान की आत्मा है जिसमें देश की एकता, बहुलता और संस्कृति व्याप्त है।

न्यायमूर्ति मिश्रा बेनेट विश्वविद्यालय के सात दिवसीय संविधान महोत्सव के अंतिम दिन के कार्यक्रम में बोल रहे थे। अपने भाषण के प्रारंभ में उन्होंने संविधान की उद्देशियका का महत्व समझाया। वह सच पूछा जाए तो संविधान की आत्मा है और संविधान में निहित उसके मूल चरित्र को स्पष्ट करती है। उद्देशियका के प्रारंभ के शब्द ‘हम भारत के लोग’ पूरे संविधान में निहित दर्शन को स्पष्ट करते हैं। ये शब्द यह स्पष्ट करते हैं कि हम भारत के लोगों में ही संविधान की सार्वभौमिकता निहित है। उद्देशियका के अंतिम शब्दों का उल्लेख करते हुए मिश्रा जी ने कहा कि ये शब्द हैं कि ‘‘हम इस संविधान को स्वीकार करते हैं और इसे कानून का रूप देते हुए स्वयं को सौंपते हैं”।

इस संविधान की खासियत यह है कि यह हमारे ऊपर यह किसी बाहरी ताकत ने नहीं लादा अपितु इसे देश के निवासियों ने स्वयं को सौंपा है। देश के स्तर पर इस धर्मनिरपेक्ष संविधान को लागू करने की जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग संबंधी मामले में अपने निर्णय में निभाई है। अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि नागरिकों की स्वतंत्र आवाजों को दबाना लोकतंत्र के हित में नहीं है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि उद्देष्यिका ही इस बात की घोषणा करती है कि भारत एक सेक्युलर देश है। धर्मनिरपेक्षता का आशय है कि राज्य सत्ता का कोई अधिकृत धर्म नहीं है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ और स्पष्ट प्रावधान है कि देश के नागरिकों को अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी धर्म को मानने और उसका प्रचार-प्रसार करने की पूरी आजादी है। संविधान न सिर्फ किसी भी धर्म को मानने की छूट देता है वरन् ऐसे व्यक्ति की सुरक्षा की गारंटी भी देता है जो किसी भी धर्म को नहीं मानता है और इस बात की भी गारंटी देता है किसी भी नागरिक के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होगा।

न्यायमूर्ति बेनेट विश्वविद्यालय द्वारा संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। जैसा हम जानते हैं कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अंतिम रूप से स्वीकार किया था।

(एल एस हरदेनिया द्वारा प्रसारित)